Meri uljhan meri tanhai,,
Khud ko dhundti khud ki parchai…
Bikhri zindagi…bikhari batein,,
Samay ke rath par badhti saansein. . .
Ojhal hota dur kinara,,
Bhatkabo ki is uljhan me..dhundu mein bhi ek kinara. . .
Meri bhi had he shyad,,
Jane na ye baat zamana. . .
Meri uljhan meri tanhai,,
Khud ko dhundti khud ki parchai…
~VIPUL~
Meri bui tanhai ... bahut sahi
ReplyDelete.
Beautiful lines. . . loved it :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विपुल....
ReplyDeleteअगर देवनागरी में लिख सको तो और मज़ा आये पढने का......
अनु
अनु जी की बात दोहराता हूँ... देवनागरी में लिखने और पढने दोनों में मज़ा आता है...
ReplyDeleteमेरी उलझन मेरी तन्हाई,,
ReplyDeleteखुद को ढूंडती खुद की परछाई…
बिखरी ज़िंदगी…बिखरी बातें,,
समय के रात पर बढ़ती साँसें. . .
ओझल होता दूर किनारा,,
भटकाबो की इस उलझन मे..ढूंडू में भी एक किनारा. . .
मेरी भी हद हे श्यद,,
जाने ना ये बात ज़माना. . .
मेरी उलझन मेरी तन्हाई,,
खुद को ढूंडती खुद की परछाई…
(अपने दोस्तों की बात मान कर इसे ही ऊपर पेस्ट कर दीजिये)
आप चाहें तो इस साइट की मदद ले सकते हैं---http://www.quillpad.in/editor.html
कविता बहुत ही अच्छी है।
सादर
Phone me hindi phonts nahi dikhte yashwant ji....yah problem he...
ReplyDeletevipul ji khud hindi me hi sari poems likhte he...par phone se post karne k karan hindi me post karna possible nahi he....
maf kijiye...
Okk.फोन मे यह प्रॉबलम तो होता है। मुझे मालूम नहीं था कि विपुल जी फोन से पोस्ट करते हैं।
Deleteसादर
अच्छी रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई
बहुत सुन्दर ,, बहुत प्यारी रचना...
ReplyDelete:-)
सुन्दर रचना ...देवनागरी की मांग मेरी भी है
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