Sunday, 16 September 2012

~~ नीम का पेड़ ~~


वो घर में सबसे बड़ा , सबसे बुज़ुर्ग था
हा वो घर के कोने में लगा नीम का पेड़ था//

सब कुछ देखा उसने ..
सब कुछ सहा उसने ..
बरसात हवा और पानी //

अविचल खड़ा रहा वो हम सब की ऊँगली थामे 
हमारे दुःख , हमारे सुख सबका साक्षी था वो //
हमारे दुखो पर दया के लिए 
ईश्वर से प्रार्थी था वो //

उसने देखी थी घर में नन्ही किलकारियां 
और देखे थे मातम के आसू भी ..
उसके ह्रदय में थी ख़ुशी 
और संवेदना भी ..

पर अब उसका कद कुछ घटने लगा था
किसी बीमार बूढ़े की तरह खटकने लगा था ..

अवशाक्ताओ की चादर बढ़ने लगी थी 
नयी ईमारत बनाने की तैय्यारी चलने लगी थी ..


वो घर में सबसे बड़ा , सबसे बुज़ुर्ग था
हा वो घर के कोने में लगा नीम का पेड़ था//


~विपुल ~

Wednesday, 5 September 2012

त्यौहार

जीवन एक त्यौहार बने
फाग बसंती मधुमास बने..

रंग बने , खुशबु बने
शबनम सा एहसास बने..

जीवन एक झरने सा कल- कल बहता
उन्मुक्त अल्हड उल्हास बने... 

पिहू, पपीहे सा कलरव 
जीवन का हर गान बने... 

जीवन एक त्यौहार बने ...

दीप जले हर अंधियारे में 
दीप शिखा हर रत बने.. 
भूके की रोटी बने ..
मरते का जीवन दान बने.. 
बच्चे सी मीठी मुस्कान बने..

जीवन एक त्यौहार बने..

फाग बसंती मधुमास बने...

~विपुल ~

Saturday, 1 September 2012

// नारी //



देहलीज़ तो देहलीज़ थी ,
कभी लांग न पाई वो ///

कभी खुले आकाश में ,
उड़ न पाई वो ///

कभी गिरी, कभी उठी ,
कभी सहमी रही वो ///

दो कदम भी अपने कदम से ,
चल न पाई वो ///

करती रही सब के लिए सब कुछ ,
पर दुनिया हे बड़ी शातिर ये समझ न पाई वो ///

ख्वाब बुने थे कुछ ,
सपने देखे थे उसने भी ///

केसे टूटे,केसे बिखरे 
ये समझ न पाई वो ///

कभी माँ ...कभी बहन ...
कभी बीवी बनी वो ...

ये दर या वो दर ,
हे कौनसा उसका घर??
 ये समझ न पाई वो ///

देहलीज़ तो देहलीज़ थी ,
कभी लांग न पाई वो ///

~विपुल ~